Friday 7 March 2014

तेरे ख़यालों के चादर को ओढ़ रखा है मैंने
तुझे, मेरे होने की वजह बना रखा है मैंने
मेरा वजूद तो कबका बिखर गया होता
तेरे तसव्वुर से, खुद को समेट रखा है मैंने
सब अलफ़ाज़ मेरे ख़त्म भी हो गए तो क्या;
तुझे अल्फ़ाज़ों से पहले सोच रखा है मैंने
ज़िस्म के खोल में अब क़ैद नहीं रहा मैं
तुझे रूह के ज़र्रे ज़र्रे में डुबो रखा है मैंने
सिर्फ एक तेरे होने से ही तो मेरा होना है
मेरे क़ायनात का तुझे खुदा बना रखा है मैंने
अब क्या काम, क्या होश, क्या जहां
अपना सब कुछ तो, तुझे बन ऱखा है मैंने
तू मेरा खुद है, मेरे दिल के ज़मीन पे क्यों आये
इसलिए तुझे खुद से अनजान रखा है मैंने
फिर भी सदियों से तेरे आने का इंतेज़ाऱ है
तेरे इंतज़ार से सदियाँ महका रखा है मैंने
खैर, जो कभी फुरसत हो तुझे तो मुझसे पूछना
कि तेरे लिए खुद को क्या क्या बना रखा है मैंने
                                                      - रविशेखर मिश्रा

No comments:

Post a Comment