कि हर शख़्स मुझे देखता है आज खफा हो के
कभी मेरी बुलंदी का शोर था यहां
आज ख़ामोशी भी चलती है मुझसे नज़र बचा के
इसी जगह आलम मेरे फ़सानो पे इतराता था
इसी जगह चुप चाप बैठा हूँ जहां से घबरा के
थी हर नज़र में आरज़ू मेरे वजूद को छूने की
है हर नज़र में आरज़ू मुझसे नज़रें चुराने के
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