Tuesday 18 April 2017

ये मौसमों के तेवर हैं या इम्तिहां हैं मेरे हौंसलों के



ये मौसमों  के तेवर हैं या इम्तिहां हैं मेरे हौंसलों के 
कि हर शख़्स मुझे देखता  है आज खफा हो के 

कभी मेरी बुलंदी का शोर था यहां 
आज ख़ामोशी भी चलती है मुझसे नज़र बचा के 

इसी जगह आलम मेरे फ़सानो पे इतराता था 
इसी जगह चुप चाप बैठा हूँ जहां से घबरा के 

थी हर नज़र में आरज़ू मेरे वजूद को छूने की 
है हर नज़र में आरज़ू मुझसे नज़रें चुराने के

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