आज न जाने क्यों बादलों को देख, मन में कई जज़्बात आये
इन भीगे आसमानों में तुम बहुत याद आये
तेरे तल्ख़ी - ए - इश्क़ की मस्ती से झूम उठा हूँ आज
मदमस्त सावन की इन घटाओं में, तुम बहुत याद आये
तुम नहीं हो जब, तो है मेरी ख्वाइशें बे - इन्तहा
कि ख्वाईश कोई भी करूँ तो बस तुम याद आये
कितने शीरी तेरे लबों की मेरे लबों पे छूटे हुए हैं
की आज अपने होठों के लम्स में भी तुम याद आये
तेरी खुशबू; तेरी अज़ान - सी उठती हुई खुशबू
क़ायनात के हर ज़र्रों में मुझे तुम याद आये
यूँ तो बैठा हूँ तुमसे कुछ लम्हों की दूरी पर
पर हर लम्हों में आज - बस तुम याद आये
तेरा इंतज़ार भी है और मुझे कुछ रोज़गार भी
पर दिन भर तेरी कसम, तुम बहुत याद आये
- रविशेखर मिश्रा
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