Saturday 24 May 2014

दिन सुहाना था, शाम सुहानी थी 
तेरी पहलु में मेरी हर रात दीवानी थी 

इस फ़लक पे जो आज ग़ुबार देखते हो 
कल तलक यहाँ, बिखरी हुई चांदनी थी 

वीरान - सा ये समंदर, जो अफ़साने ढूंढता है 
कभी इसमें किसी चाँद के कश्ती की कहानी थी 

टूटा हुआ ये बादा - ओ - ज़ाम, और बिखरी हुई फज़ाएँ 
इसी मयखाने में कभी, मेरी जवानी थी 

उसे भुलाने की ता-उम्र कोशिश तो बहुत की मग़र 
मेरे वज़ूद में बस - उसी की कहानी थी 
                      
                            - रविशेखर मिश्रा

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