दिन सुहाना था, शाम सुहानी थी
तेरी पहलु में मेरी हर रात दीवानी थी
इस फ़लक पे जो आज ग़ुबार देखते हो
कल तलक यहाँ, बिखरी हुई चांदनी थी
वीरान - सा ये समंदर, जो अफ़साने ढूंढता है
कभी इसमें किसी चाँद के कश्ती की कहानी थी
टूटा हुआ ये बादा - ओ - ज़ाम, और बिखरी हुई फज़ाएँ
इसी मयखाने में कभी, मेरी जवानी थी
उसे भुलाने की ता-उम्र कोशिश तो बहुत की मग़र
मेरे वज़ूद में बस - उसी की कहानी थी
- रविशेखर मिश्रा